Sunday, December 26, 2010

लहरों को खामोश देखकर ये मत समझाना की समंदर में रवानी नहीं है,

लहरों को खामोश देखकर ये मत समझाना की समंदर में रवानी नहीं है,
हम जब भी उठेंगे तूफा बन कर उठेंगे, बस अभी उठने की ठानी नहीं है. //
हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया हमपर किसी खुदा की इनायत नहीं रही,
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग रो-रो के बात कहने कि आदत नहीं रही। // 

लोग रूठ जाते हैं मुझसे
और मुझे मानना नहीं आता
मैं चाहता हूँ क्या
मुझे जाताना नहीं आता
आंसुओं को पीना पुरानी आदत है
मुझे आंसू बहाना नहीं आता
लोग कहते हैं मेरा दिल है पत्थर का
इसलिए इसको पिघलाना नहीं आता
अब क्या कहूं मैं
क्या आता है, क्या नहीं आता
बस मुझे मौसम की तरह
बदलना नहीं आता / ........

Thursday, December 23, 2010

टीवी चैनलों वाले भी क्या करें? उनको हमेशा ही सनसनीखेज की जरूरत है, वह न मिलें तो उसका एक ही उपाय है कि होता है कि हर खबर को सनसनीखेज खबर बनाया जाये। जब हर दस मिनट में ‘ब्रेकिंग न्यूज’ देना है तो फिर चाहे जो खबर पहली बार मिले उसे ही चला दो।
कोहरा कोई खास खबर नहीं है। कम से कम सर्दी में तो नहीं है। अगर सर्दी में मावठ की वर्षा न हो पड़े तो फिर फसलों के लिये परेशानी तो है ही आने वाली गर्मियों में जमीन का जलस्तर बहुत जल्दी कम हो जाने की आशंका हो जाती है।
कोहरे में रेलगाड़ियों के लिये क्या आदमी के लिये भी घर से निकलना परेशानी का कारण हो जाता है।
इधर घर में रजाई में बैठकर सर्दी से ठिठुर रहे हैं और उधर टीवी सुना रहा है कि ‘नई दिल्ली में हवाई जहाज की उड़ाने रद्द’, ‘उड़ाने रद्द होने से यात्री परेशान’, ‘नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन पर अनेक गाड़ियां कोहरे के कारण लेट’ और वही पुराना राग ‘सही जानकारी न मिलने से यात्री परेशान’। लगातार ब्रेकिंग न्यूज चल रही है। यात्रा करने वालों के लिये अनेक कारण यात्रा के हो सकते हैं। अजी, इस मौसम में ही शादियां अधिक होती हैं तो गमियां भी! आदमी को जाना पड़ता है। फिर इधर नया साल आया। यह अपना परंपरागत भारतीय पर्व नहीं हैं। इस मौसम में कोई भी भारतीय पर्व नहीं पड़ता। शायद इसलिये अनेक विशेषज्ञ कहते हैं कि त्यौहारों का मौसम स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार उसी समय होता है जब मौसम ठीकठाक हो और इसी कारण वह परंपरा भी बन जाते हैं। मगर अपने यहां खिचड़ी संस्कृति है सो लोग इसकी परवाह नहीं करते।
जिस दिन नया साल आ रहा था। सर्दी के मारे हम तो सो गये। रात को फटाके जलने की आवाज से हमारी निद्रा टूटी। बहुत देर तक हम सोच रहे थे कि ‘शायद कोई बारात आयी होगी।’ जब लगातार फटाखे जलने की आवाज आयी- साथ में हमारी नियमित स्मृति भी-तब याद आया कि नया वर्ष आया है।
ऐसे फटाखे शायद पूरे भारत में जल होंगे और शायद इससे पर्यावरण प्रदूषित नहीं हुआ होगा शायद इसने इसलिये नहीं लिखा। दिवाली पर तो बहुत रोना रोते हैं लोग कि ‘बड़ा खराब त्यौहार है, जिस पर जलने वाले फटाखों से पर्यावरण प्रदूषित होता है।’
शायद यह अंग्रेजी त्यौहार है इस पर ऐसी बातें लिखना पुरातनपंथी व्यवहार का प्रमाण होगा। सर्दी ने नया साल वगैरह सब भुला दिया है पर इस मौके पर शादी और गमी के अलावा अन्य आवश्यक कार्य से यात्रा पर जाने वालों से अधिक संख्या उन लोगों की होगी जो नववर्ष मनाने के लिये कही सैरसपाटे करने जा रहे होंगे या लौटते होंगे। ऐसे में सर्दी में अपने कमरे के अंदर रजाई में बैठे एक सज्जन ने हमसे कहा-‘यार, लोग इतनी सर्दी में अपने घर से बाहर क्यों निकलते हैं?’
हमें अपने आप पर ही शर्मिंदगी महसूस होने लगी क्योंकि हम भी तो उनके यह अपने ही घर से निकल कर आये थे।’
हमने कहा-‘ब्रेकिंग न्यूज बनाने के लिये।’
वह सज्जन बोले-‘हां, यह बात कुछ जमी! तुम्हारा हमारे यहां आना ब्रेकिंग न्यूज से कम नहीं है। तुम्हारा काफी पीने का हक बनता है। इतने दिनों बाद तुम्हें हमारी याद आयी।’
हमने कहा-‘इससे बड़ी बात यह है कि हम सर्दी में घर से बाहर निकले। पता लगा कि तुम बीमार हो! दोस्त यारों ने हम पर दबाव डाला कि हम तुम्हें देखने आयें।’
वह सज्जन बोले-‘तब तो तुम्हें पांच दिन पहले आना था। अब तो हम ठीक हैं। इस तरह तो तुम्हारा यहां आना भी सार्थक न रहा।’
हमने काफी का कप उठाते हुए कहा-‘यार, तुमने काफी पिलाकर कुछ दर्द हल्का कर दिया। वैसे सर्दी में घर से निकलने का अफसोस तुम्हारी तबियत देखने के कारण नहीं था पर तुमने ऐसी बात कर दी कि लगने लगा कि हमने गलती की।’
वह सज्जन रजाई में बैठे ही उचकते हुए बोले-‘यानि, मेरी तबियत अच्छी देखकर तुम्हें खुशी नहीं हुई। अपने सर्दी में बाहर निकलने का दर्द तुमको अब इसी कारण हो रहा है।’
हमने कहा-‘नहीं यार, तुम्हारी बात से हमें ऐसा लगा कि सैर सपाटा करने निकले हैं।
यह एक सामान्य बातचीत थी। वाकई इस बार सर्दी अधिक पड़ रही है पर ऐसा हमेशा होता है। इसमें ब्रेकिंग न्यूज जैसा कुछ हो सकता है या इससे सनसनी फैल सकती है, ऐसा नहीं लगता। बरसात में बाढ़ आने की खबरें सुनते हुए बरसों हो गये। कहते हैं कि दर्द झेलते हुए एसा समय भी आता है जब आदमी संवेदनायें मर जाती हैं और कहीं वह दर्द चला जाये तो आदमी को अजीब सा लगता है। यह कोहरा तथा उससे विमानों की उड़ाने और रेल यातायात का बाधित होना अब कोई प्रतिक्रिया पैदा नहीं करता। मगर खबर देने वाले भी क्या करें? लोग घर से निकलते कम हैं तो उनके लिये खबरें भी कम हो जाती हैं। फिर इतना बड़ा देश है तो लोग मजबूरी में यात्रायें तो करेंगे और चाहे जो भी मौसम हो तो हवाई अड्डों और स्टेशनों पर भीड़ होगी ही। अगर वह दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता या अन्य बड़ा शहर हुआ तो फिर कहना ही क्या? तब तो खबरें लिखने वालों को बाहर निकलते ही खबर मिल जाती है। बाकी देश में कहां ढूंढते फिरें! ऐसे में सर्दी में अपने दिनों की याद को हम अकेले में ही याद कर उसे अपने ब्लाग पर लिखते है

खुदा से क्या मांगू तेरे वास्ते

खुदा से क्या मांगू तेरे वास्ते
सदा खुशियों से भरे हों तेरे रास्ते
हंसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह
खुशबू फूल का साथ निभाती है जिस तरह

सुख इतना मिले की तू दुःख को तरसे
पैसा शोहरत इज्ज़त रात दिन बरसे
आसमा हों या ज़मीन हर तरफ तेरा नाम हों
महकती हुई सुबह और लहलहाती शाम हो

तेरी कोशिश को कामयाबी की आदत हो जाये
सारा जग थम जाये तू जब भी गए
कभी कोई परेशानी तुझे न सताए
रात के अँधेरे में भी तू सदा चमचमाए

दुआ ये मेरी कुबूल हो जाये
खुशियाँ तेरे दर से न जाये
इक छोटी सी अर्जी है मान लेना
हम भी तेरे दोस्त हैं ये जान लेना

खुशियों में चाहे हम याद आए न आए
पर जब भी ज़रूरत पड़े हमारा नाम लेना
इस जहाँ में होंगे तो ज़रूर आएंगे
दोस्ती मरते दम तक निभाएंगे

                                   सुनील  ....................

Wednesday, December 22, 2010

सुन ! ऐ जिंदगी

सुन ! ऐ जिंदगी 
मै तुमको  बताना चाहता हूँ 
छोड़ दे तू साथ मेरा
मै तुझसे दूर जाना चाहता हूँ  

देख लिया तेरे साथ चलकर
तन्हा चलता आया हूँ
कोई भी तो साथ न आया 
भीड़ में जलता  आया हूँ

जब से जाना है 
तन्हाई के आलम को 
उसके हर रूप का दीवाना हूँ 
तू तो न बना पाया अपना मुझको 
मै उसका कल से दीवाना हूँ

तेरा जहाँ -ए - दस्तूर 
तुझको मुबारक,
जहाँ हर कदम पे 
धोखा  है  
कहने को तो हर कोई साथ है 
पर हर पल आदमी अकेला है 

सुन ! ऐ जिंदगी 
मै तुमको बताना चाहता हूँ
साथ तो तुम भी चले थे 
अब मै तुझे साथ का मतलब बताना चाहता हूँ 

जैसे उड़े पतंग डोर क संग 
जैसे रहे बिरहन यादो के संग 
जैसे लगे नयन 
सपनो के संग 
वैसे ही  रहे तन्हाई अब मेरे संग, 

सुन ! ऐ जिंदगी 
मै तुमको  बताना चाहता हूँ 
छोड़ दे तू साथ मेरा
मै तुझसे दूर जाना चाहता हूँ


आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने प्यार से इसे अनुग्रहित करे

Tuesday, December 21, 2010

क्या लिखूँ कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ या दिल का सारा प्यार लिखूँ

क्या लिखूँ कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ या दिल का सारा प्यार लिखूँ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰
मै उगता सुरज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰
वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की मुस्कान लिखूँ,
वो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँ,
मै आपको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँ
मै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँखों की मै रात लिखूँ॰॰॰॰॰॰
मीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ
बचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँ
सागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँ,
वो पहली -पहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ,
सावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आँखों की बरसात लिखूँ॰॰॰॰॰॰
गीता का अर्जुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰
मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰
मै एक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰ या मजहब की आँखें चार लिखूँ॰॰॰
कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ या दिल का सारा प्यार लिखूँ..
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,

चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है.

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,

चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है.

आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,

जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है.

मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,

बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,

क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो.

जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,

संघर्श का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम.

कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती 

                                           ...............सुनील

Monday, December 20, 2010

जितने मुखबिर थे वो अखबारों के मालिक हो गए

जो दरबदर थे वो दिवारों के मालिक हो गए...
मेरे सब दरबान दरबानों के मालिक हो गए...
लफ्ज़ गूंगे हो चुके...तहरीर अंधी हो चुकी...
जितने मुखबिर थे वो अखबारों के मालिक हो गए..

 इंडियन  ग्रोव्थ
बोफोर्स घोटाला- 64 करोड़ रुपए
यूरिया घोटाला- 133 करोड़ रुपए
चारा घोटाला- 950 करोड़ रुपए
शेयर बाजार घोटाला- 4000 करोड़ रुपए
सत्यम घोटाला- 7000 करोड़ रुपए
स्टैंप पेपर घोटाला- 43 हजार करोड़
रुपए
कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला- 70 हजार
करोड़ रुपए
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला- 1 लाख 67 लाख
करोड़ रुपए
अनाज घोटाला- 2 लाख करोड़ रुपए
(अनुमानित)। दायित्व सब पर है मगर क्या राजनेता हद नहीँ कर रहे, जिनके हाँथो मेँ अधिकार हैँ, जिनके हवाले जनता ने भरोसा कर के देश की तिज़ोरी की चाबी की है??

                                             ..................... सुनील 

Thursday, December 9, 2010

केवट

मै सुनील  राज्य उत्तर प्रदेश सिटी बहराइच मोहल्ला बशीर गंज में एक छोटे और गरीब मोहल्ले में रहता हूँ पश्चिम की और दबंग यादव और पूरब ,उत्तर ,दछिण, की तरफ दबंग मुस्लिम और उसके बीच में कुछ टूकड़ी  केवट जात के लोग रहते है रहते है जो २०० सौ वर्सो से उसी स्थान पर  रहते है जो बहुत ही गरीब है और उनके घर का खर्चा उनकी औरते मजदूरी बर्तन मजना दुसरो के घर काम काज कर के चलती है जिनकी घर की इस्थिति बहुत ही ख़राब है जिनके छोटे छोटे बच्चो के हाथ में किताब होना चाहिये उसकी जगह पर हाथ में  कंचा , ताश के पत्ते और कुछ बड़े होने पर दारू बीडी और नसे की हार हालत अपना लेते है जीससे जुआ खेलने के लिये कर्ज लेते है और कर्ज में डूब जाते है  कर्ज तो दे नहीं पते है जीशासे उनकी घर की औरतो को घर चलने के लिये घर से निकलना पड़ता है इस मोहल्ले के केवट जात की आवादी लगभग १५०० सौ लोग होंगे इसमें से ५० लोग पड़े लिखे १४५० लोग अनपर है इस मोहल्ले की इस्थिति बहुत ही नाजुक है इतनी नाजुक है.